जब कभी मरना चाहूं तब जिंदगी से मुलाकात होती है...
पर जब भी जिंदगी को चाहूं तब सिर्फ़ बरसात होती है...
धुल जाते हैं जिसमे सब रंग ख्वाबों की तस्वीरों के ,
और हर तस्वीर में अधूरापन ही सौगात होती है...
जब भी भागना चाहूं अपनी ही परछाई से,
तब हर पल रौशनी मेरे साथ होती है...
पर जब भी साथ चाहूं अपनी परछाई का,
तब हर तरफ़ काली अँधेरी रात होती है...
जब भी ओढ़ना चाहूं खामोशी की चादर को,
तब दूर किसी की आँहों की आवाज होती है...
कर देती है हमेशा गम को जो रुखसत,
फिर से एक जिन्दगी की शुरुआत होती है...
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