Monday, February 27, 2012

थक जाता हूँ ये सोच सोच कर की ना जाने क्या कम है

बहुत दिनों से मैं सोच रहा था की कुछ लिखूं ... जो लिख रहा हूँ वो शायद सच नहीं पर जो सच मैं दिल मैं है वो लिखना मुमकिन नहीं, फिर भी एक उस एहसास को सामने लाया हूँ, जो शायद सबसे आसान है पर सब पेचीदा कर देता है, और हर तमन्ना को यादों के अफ़सोस से भर देता है। हम तो जिए जा रहे हैं ये सोच कर की शायद एक दिन जीना सीख जायेंगे ताज्जूब तो हर शक्स को होगा जिसके अक्स से...नजरे ना चुरायेंगें... पेश है ...

थक जाता हूँ ये सोच सोच कर कि ना जाने क्या कम है,
ख़ुशी ही ख़ुशी है निहारने के लिए पर... आँखें नम हैं ।
कोई रौशनी मुझे रुसवा नहीं करती, और ना  ही रात का मातम है ।
अपने मेरे सब खुश हैं बिंदास हैं, आज भी दिल के पास हैं ।
नगमो में साज है धुन है , हर धुन की कशिश छु जाती है,
पर जो लम्हों की कसक बाकी है, अक्सर मुझे याद आती है ।
दिन... हर पल के खालीपन को समझने में चला जाता है ,
और रात... इस दिल को खालीपन समझाने में...बेबसी जताने में ।
कभी किस्मत पर हंसी आ जाती है तो कभी... अपनी तकदीर पर रोना ।
कि... चाह कर भी उन अहसासों को भुला नहीं पाया जिनकी,
आग तो कब की बुझ गयी पर राख अब भी गरम है ।
बस थक जाता हूँ ये ही सोच सोच कर की... ना जाने क्या कम है ?

2 comments:

  1. Kya likha hai .. maan gye ustad :)

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    1. Dhanyvaad...Bose bhai...aap english ke ustad to hum hindi ke.

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