Friday, August 14, 2009

कुछ चाहतें ऐसी भी ...

ये नगमें अतीत के पन्नों से -
चाहत थी उनके होटों का जाम बनने की,
वो हमें आंखों से छलकना सिखा गए,
चाहते थे उनकी साँसों को महकाना ,
वो हमारी धडकनों को बेगाना बना गए,
चाहत थी उनकी मूरत बनाने की,
वो हमारी जिंदगी को बेजान बना गए,
चाहते थे उन पर कविता बनाना,
वो हमें शायर बदनाम बना गए।

1 comment:

  1. waah janaab waah..
    lagta hai jaise apki in panktiyon me aapne apne hi jeevan k kuch pannon ki chhavi prastut kar di ho..
    ati sundar rachna hai... aise ubharte hue surya ko mera naman!

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